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रवांडा जनसंहार में पहली महिला दोषी

२४ जून २०११

जनसंहार की सुनवाई कर रहे ट्राइब्यूनल ने रवांडा की पूर्व महिला कल्याण मंत्री को दोषी करार दिया. उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई. पूर्व मंत्री ने मानवता के खिलाफ युद्ध छेड़ा और सैकड़ों महिलाओं का बलात्कार करवाया.

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तस्वीर: AP

तंजानिया में सुनवाई कर रही संयुक्त राष्ट्र अदालत ने कहा, "पाउलिन न्यिरामासहोको को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है. पाउलिन न्यिरामासहोको ने अंतरिम सरकार के अन्य लोगों के साथ साजिश रच बुतार में जनसंहार करवाया."

जनसंहार के अलावा पाउलिन महिलाओं के सामूहिक बलात्कार की साजिश भी रची. उसने हिंसक भीड़ को बलात्कार के लिए उकसाया. इंटरनेशनल क्रिमिनल ट्राइब्यूनल के जज विलियम हुसैन सेकुले ने कहा, "उसने बुतार के प्रांतीय दफ्तर में बलात्कार के आदेश दिए. उग्रपंथियों से बलात्कार करवाने की मुख्य जिम्मेदारी उसी की थी."

68 साल की पाउलिन 11 में से सात आरोपों की दोषी करार दी गई. 1994 में उत्तरी रवांडा के बुतार प्रांत में हुए जनसंहार के लिए उसे दोषी करार दिया. पाउलिन के बेटे आरसेने शालोम नताहोबाली को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. अभियोजन पक्ष के होला माक्वाइआ के मुताबिक पाउलिन ने बुतार में तुत्सी समुदाय को पूरी तरह मिटा देने की कोशिश की. फैसले के दिन सारे पाउलिन न्यिरामासहोको भी अदालत में मौजूद रही.

रईस पाउलिन

रवांडा के रईस परिवार में जन्मी पाउलिन 40 साल की उम्र में यूनिवर्सिटी गई. वहां उसने कानून की पढ़ाई की. 1992 में वह रवांडा की परिवार और महिला कल्याण मामलों की मंत्री बनी. दो साल तक वह इस पद पर रही, इसी दौरान जनसंहार भी हुआ.

नरसंहार के बाद हुए चुनावों में रवांडन विपक्षी पेट्रिओटिक फ्रंट की जीत होने के बाद पाउलिन रवांडा से भाग गई. वह पड़ोसी देश कांगो गणराज्य गई. जनसंहार के मामले की जांच शुरू होने के बाद पाउलिन को 1997 में केन्या में गिरफ्तार किया गया. फिर संयुक्त राष्ट्र की अदालत में मुकदमा शुरू हुआ. पाउलिन हिरासत में रखी गई अकेली महिला थी.

भयावह हिंसा

अफ्रीकी देश रवांडा में छह अप्रैल 1994 में हुतु समुदाय के नेता और राष्ट्रपति हाबयारीमाना के विमान को हमला कर गिरा दिया गया. राष्ट्रपति की मौत के बाद देश में तुत्सी समुदाय के खिलाफ हिंसा भड़क उठी. हुतु समुदाय के कट्टरपंथियों ने विमानों से तुत्सियों के रिहाइशी इलाकों पर बम गिराए. स्थिति को नियंत्रण में कर सकने वाले प्रमुख नेताओं को फौरन मार दिया गया. समय के साथ हिंसा बढ़ती चली गई. तुत्सी समुदाय के लोगों की खोज खोजकर हत्या की गई. उन लोगों की भी हत्या कर दी गई जिन पर शक हुआ कि शायद वे तुत्सी हैं.

हिंसा के चलते जब तुत्सी समुदाय के लोग भागने लगे तो देश भर की सड़कें बंद कर दी गईं. चर्च में शरण लेने वाले लोगों को आग लगा दी गई. परिवार के परिवार खत्म कर दिए गए. साजिश रचकर बेरहमी से तुत्सी महिलाओं का बलात्कार करवाया गया. एक अनुमान के मुताबिक हिंसा में हुतु समुदाय के दो लाख लोगों ने हिस्सा लिया. कुछ ही हफ्तों के भीतर 8,00,000 लोगों की हत्या कर दी गई. इनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे. हिंसा का विरोध करने वाले हुतु समुदाय के हजारों लोगों को भी मौत के घाट उतार दिया गया.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: आभा एम

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