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मंदी की चपेट में आई जर्मन अर्थव्यवस्था

२१ फ़रवरी २०२२

यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था मंदी झेल रही है. जर्मनी के संघीय बैंक बुंडेसबांक के मुताबिक लगातार दो तिमाहियों में अर्थव्यवस्था में गिरावट है. कोरोना के बाद क्या यूक्रेन संकट वैश्विक अर्थव्यवस्था को लड़खड़ा देगा?

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कोरोना का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर
कोरोना का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था परतस्वीर: Zoonar/picture alliance

जर्मनी के केंद्रीय संघीय बैंक, बुंडेसबांक ने सोमवार को कहा कि जर्मन अर्थव्यवस्था तकनीकी रूप से मंदी का सामना कर रही है. लगातार दो तिमाहियों में अगर आर्थिक विकास घटे तो उसे तकनीकी रूप से मंदी कहा जाता है. 2021 की आखिरी तिमाही में जर्मन जीडीपी 0.7 फीसदी घटी. 2022 की शुरुआत में भी आर्थिक विकास पर ब्रेक लग रहा है. बुंडेसबांक ने अपनी मासिक आर्थिक रिपोर्ट में कहा है, "2022 की पहली तिमाही में ओवरऑल इकोनॉमिक आउटपुट काफी घट सकता है, वसंत में यह फिर से रफ्तार पड़ेगा."

बैंक ने इस तकनीकी मंदी के लिए कोरोना महामारी को जिम्मेदार माना है. बैंक के मुताबिक सेवा क्षेत्र से जुड़े कुछ सेक्टरों पर महामारी ने करारी चोट की है. जर्मनी निर्यात पर निर्भर अर्थव्यवस्था है. देश की आर्थिक ताकत के केंद्र में मशीनरी का एक्सपोर्ट सबसे ऊपर है. लेकिन अभी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर "गंभीर" समस्याओं का सामना कर रहा है. बैंक के मुताबिक कच्चे माल और पुर्जों की कमी के साथ साथ कामगारों की कमी भी बड़ी मुश्किल बनी है.

जर्मनी के बुंडेसबांक के प्रमुख योआखिम नागल
जर्मनी के बुंडेसबांक के प्रमुख योआखिम नागलतस्वीर: Britta Pedersen/dpa/picture alliance

जर्मन सेंट्रल बैंक का कहना है कि 2021 के आखिर में सप्लाई चेन हालात कुछ बेहतर होने लगे. इसी के आधार पर उम्मीद की जा रही है कि 2022 की दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ सकेगी.

आर्थिक विकास ही राह में कई तरह की बाधाएं

जर्मनी नवंबर 2021 से कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट से जूझ रहा है. रिकॉर्ड संख्या में केस आने का बाद अब धीरे धीरे लहर नीचे आती दिख रही है. सरकार पर भी सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था का दबाव दिख रहा है. यही वजह है कि मार्च से कोरोना संबंधी पांबदियों को घटाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.

कोविड के कारण वैश्विक सप्लाई चेन में आ रही समस्याओं और तेल के महंगे दामों के कारण दुनिया भर के देश अभी आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. अमेरिका में 40 साल बाद मंहगाई सबसे ऊंचे स्तर पर है. जर्मनी में कीमतें बढ़ रही हैं. भारत में तेल के दाम आए दिन आसमान छूने लगते हैं. दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन भी मुश्किलों का सामना कर रहा है.

यूक्रेन को लेकर अमेरिका और रूस में टकराव
यूक्रेन को लेकर अमेरिका और रूस में टकरावतस्वीर: AFP

यूक्रेन संकट की आंच

ऐसे में अगर अमेरिका और यूरोपीय संघ रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाएंगे तो उनकी मार जर्मनी समेत दुनिया भर के देशों और कंपनियों पर भी पड़ेगी. यूएन के अंतरराष्ट्रीय कारोबार डाटा के मुताबिक 2020 में जर्मनी ने रूस को 27 अरब डॉलर का निर्यात किया. निर्यात में मशीनरी, ट्रेन और मेट्रो मशीनरी, कारें और दवाएं सबसे ज्यादा मात्रा में थीं. जर्मन इकोनॉमी में ऐसे 100 से भी ज्यादा सेक्टर्स हैं जो रूस को अच्छी खासी मात्रा में माल और सेवाएं देते हैं. इन सभी सेक्टरों में हजारों लोग काम करते हैं. रूस पर प्रतिबंध लगे तो मार हजारों जर्मन कंपनियों पर भी पड़ेगी. वहीं जर्मनी गैस सप्लाई के लिए काफी हद तक रूस पर निर्भर है. 2020 में रूस ने जर्मनी को 346.78 अरब डॉलर का सामान बेचा. इसमें सबसे ज्यादा गैस थी.

क्या है स्विफ्ट, जिसका यूक्रेन विवाद के बीच जिक्र हो रहा है

यूरोपीय संघ के जरिए सदस्य देशों को मिलने वाली वित्तीय मदद काफी हद तक जर्मनी और फ्रांस जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर निर्भर रहती है. ऐसे में यूक्रेन संकट ने अगर जर्मन अर्थव्यवस्था को हिचकोले दिए तो उसका असर पूरे यूरोप और उससे जुड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ना तय है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन कह चुके हैं कि यूक्रेन में युद्ध हुआ तो उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा. 2007-2008 में अमेरिका के बैंकिंग और हाउसिंग सेक्टर से पैदा हुई विश्वव्यापी मंदी से उबरने दुनिया को कम से चार-पांच साल लगे थे. डर है कि तमाम संकटों की ये पोटली ऐसे ही हालात न बना दे.

ओएसजे/एमजे (एएफपी, डीपीए)

मुश्किल दौर से गुजर रहा है चीन का रियल एस्टेट कारोबार
मुश्किल दौर से गुजर रहा है चीन का रियल एस्टेट कारोबारतस्वीर: Noel Celis/AFP